January 5, 2008

श्याम - श्वेत

काली परछाइयाँ
दरारों से रिसती
ख्यालों में चुभती
अंधेरों में पिसती
कुछ अनजान निशानियाँ

पर हर साए के पीछे
कोई तो किरण है
साए को पकडो तो
मुट्ठी सफ़ेद हो जाती है
सब मन का भरम है
कालापन तो अन्दर है
ये हैं किरणों में लिपटी
उजली
परछाइयाँ....


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